जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
अपने अंतर्मन में शुभ भावों के बीज डालते रहिये ! कभी न कभी वे सुयोग पाकर
सत्कर्म के रूप में अंकुरित होंगे ही ! जैसे मेघ से पानी बरसने पर धरती के गर्भ
में पड़े बीज वर्षा का संयोग पाकर अंकुरित हो जाते हैं !
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