जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
संकट
के समय में सहारे के लिए कितने ही हाथ फैलाइए , कोई सहारा देने वाला नही है !
सहारा देने वाला है आपका एकमात्र सहज
मित्र- साहस !कितनी ही भयंकर स्थिति क्यों न हो , मृत्यु के क्षण भी निकट क्यों न
प्रतीत हो रहे हों ,आप साहस मत छोडिये ! अपनी सहायता आप स्वयं करते जायेंगे तो कोई
न कोई सहारा आपको मिल ही जाएगा और आप संकट के गर्त से निकल पायेंगे !
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