जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
दीपक की
दृष्टि अपने कर्तव्य कर्म में है ! महल और झोंपड़ी में नही ! दीपक बनकर प्रज्वलित रहिये
,सुख में भी ,दुःख में भी ! दोनों तुम्हारे दास हों ,तुम्हारे अधिकार में हो
,आज्ञाकारी सेवक की तरह !
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