जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
सामान्य
मनुष्यों की बात नही , मनुष्य के दोष दर्शन की दृष्टि ने ईश्वर एवं भगवान कहे जाने
वाले महापुरुषों के कार्य की समीक्षा करते हुए उनमे भी दोष ढूँढ लिए हैं ! सँसार में कोई भी बात या स्थिति ऐसी नही है जो
सर्वथा निर्दोष हो या सर्वथा गुणरहित हो ! मित्रता के व्यवहार से हम अपने
प्रतिपक्षी विरोधियों को भी अपना अनुकूल मित्र बना सकते हैं !
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