जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
अच्छा
हास्य वही है जिस पर आमने सामने के दोनों
मुखकमल खिल उठें ! दोनों और ही नही आसपास में भी दूर दूर तक वाह – वाह के कहकहे गूंज उठें ! यह कहकहे देश और काल की
सीमाओं को लांघते हुए हजारों हजार मीलों व हजारों हजार वर्षों को पार करते चले जाएँ
!
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