सबसे बेकार चीज क्या ?
शिष्य गुरु के पास पढता था ! एक दिन गुरु
ने कहा –वत्स ! मै तुम्हे ज्ञान दे रहा हूँ ,तुम मुझे दक्षिणा में क्या दोगे ?
शिष्य –गुरुदेव ! मै आपको रुपयों की थैली
दूँगा !
गुरु – वत्स ! मुझे रुपए नहीं चाहियें ! मै
तो वह वस्तु लूँगा, जो बेकार हो !
शिष्य ने सोचा –मै गुरुदेव को मिट्टी दे
दूँ ,यह बिलकुल बेकार चीज है ! वह मिट्टी लेकर गुरु के पास गया और निवेदन किया कि
मै दक्षिणा में आपको देने के लिए मिट्टी लाया हूँ !
गुरु ने कहा – वत्स ! मिट्टी तो बहुत काम
की चीज है ! कई बार स्थान अच्छा नहीं होता है ,उबड खाबड़ होता है ,तब स्थान पर
मिट्टी बिछाई जाती है ,जिससे वह ठीक हो जाता है ,गर्मी में ठंडा पानी रखने के लिए
मिट्टी की मटकी बनायी जाती है ,मिट्टी से इंटें बनती है इस प्रकार तुम देखो मिट्टी
बेकार नहीं है !
फिर कुछ सोचने के बाद शिष्य ने गुरु को राख
उपहृत की !
गुरु – वत्स ! राख का भी उपयोग है ! और तो
क्या ,यह तो जैन मुनियों के केश लोंच में भी काम में आती है ,यह बेकार नहीं है !
आखिर सोचते सोचते शिष्य के दिमाग में एक
विचार आया और उसने गुरु को निवेदन किया कि गुरुदेव ! मेरे भीतर जो थोडा सा ज्ञान
आपसे प्राप्त कर पाया हूँ ,उस ज्ञान का अहंकार है ! यह बेकार है ! उसे मै आपको
देना चाहता हूँ !
गुरु ने कहा – वत्स ! मै तुम्हारा अहंकार
ही लेना चाहता था ! तुम सही जगह पहुँच गये हो ,जो मै तुमसे पाना चाहता था ! जब तुम
अहंकार मुक्त हो जाओगे तो तुम्हारा ज्ञान शुद्ध हो जाएगा !
आदमी ज्ञान का अहंकार न करे ! गुरु कि
सुश्रुषा करे किन्तु गुरु के सामने अहंकार न करे !हालांकि अहंकार तो कहीं नहीं
करना चाहिये परन्तु गुरु के सामने तो विशेष रूप से विनय का भाव होना चाहिये !
आचार्य श्री मह्श्रमण जी “संवाद
भगवान से” में
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