अगर मै चाहूँ भी तो रुक नहीं सकता ए दोस्त
कारण मंजिल खुद ही ढिग बढती आती है !
मै जितना पैर बढाने की कोशिश करता
उतनी ही माटी और धसकती जाती है !
मेरे अधरों में घुला हलाहल है काला
नैनों में नंगी मौत खड़ी मुस्काती है ,
है राम नाम ही सत्य, असत्य सब और कुछ
बस यही ध्वनि कानों से आ टकराती है !
मुनिश्री 108 प्रमाण
सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से संपादित अंश
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