वास्तु पाठ -2
दिनांक 16.7.2012 को
दिगम्बर आचार्य श्री 108 गुप्तिनंदी जी
गुरुदेव द्वारा रोहतक चातुर्मास में दिया
गया वास्तु सम्बंधित पाठ ! इन आचार्य जी की मुनि दीक्षा 22.7.1991
को आचार्य श्री
कुंथूसागर जी के द्वारा रोहतक में ही हुई थी !
किस दिशा में सिर कर के सोयें
स्वस्थ व्यक्ति को व छोटे बच्चों को कभी भी उत्तर दिशा में सिर कर के
नहीं सोना चाहिये ! वास्तु के अनुसार दक्षिण की दिशा यम की दिशा होती है ! सिर उत्तर को support करता है व पैर
दक्षिण को support करते हैं ! इसीलिए दक्षिण व दक्षिण नहीं मिलने चाहिये व उत्तर व उत्तर
नहीं मिलने चाहियें !
सँसार की प्रत्येक द्रव्य में चुम्बकीय शक्ति होती है (Magnetic
Power ) ! चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं दक्षिणी
ध्रुव व उत्तरी ध्रुव (South pole
and North pole) !दक्षिणी
द्रूव ऋणात्मक होता है व उत्तरी ध्रुव घनात्मक ...South pole
denotes Minus (-) and North pole denotes Plus
(+) .
जब हम चुम्बक के दो समान point को मिलाते हैं तो उनमे विकर्षण होता है !
इसीलिए आम तोर पर मनुष्य को दक्षिण दिशा में ही सिर करके सोना चाहिये ! व्यापारी
जरूर दक्षिण दिशा में ही सिर करके सोयें !
नौकरी करने वाले या मजदूरी आदि करने वाले पश्चिम में सिर करके सोयें ! विशेष परिस्थितियों में जब सम्भव न हो तो पूर्व
में भी सिर करके सों सकते हैं लेकिन स्वस्थ व्यक्ति कभी भी उत्तर में सिर करके
नहीं सोयें !
उत्तर में सिर करके कौन सोये – अगर किसी व्यक्ति ने समाधि ,संथारा आदि
ग्रहण किया है तो या जो व्यक्ति लाइलाज बिमारी से ग्रस्त हैं और डाक्टर वैद्य आदि
सब जबाब दे चुके हैं और जिनका मरण नजदीक है ,ऐसे व्यक्ति को भवन के वायव्य दिशा (North
west ) के कक्ष में या कमरे में वह भी वायव्य कोने में
ही उत्तर में सिर करके सुलाएं ! इससे उनका मरण निराकुलता से शांतिपूर्वक होता है !
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