दिनांक 19.7.2012 को
दिगम्बर आचार्य श्री 108 गुप्तिनंदी जी
गुरुदेव द्वारा रोहतक चातुर्मास में दिया
गया प्रवचन ! इन आचार्य जी की मुनि दीक्षा
22.7.1991 को
आचार्य श्री कुंथूसागर जी के द्वारा रोहतक में ही हुई थी !
माला में 108 मनके /
दाने ही क्यों
हम प्रतिदिन के कार्यों में 108 प्रकार से पाप करते हैं ,इन पापों के
प्रक्षालन के लिए जाप करते हैं ! ये पाप हम इस तरह से करते हैं !
मन से ,वचन से ओर काय से ! 3 तरह से
कृत कारित ओर अनुमोदना से –
कृत यानि खुद से करना ,कारित यानि किसी दुसरे से करवाना ओर अनुमोदना यानि कोई ओर पाप कार्य कर रहा हो उस को अनुमोदन
करना ,बढ़ावा देना ! 3 तरह से
समरम्भ ,समारम्भ और आरम्भ से – समरम्भ यानि योजना बनाना ,समारम्भ यानि
व्यवस्था करना और आरम्भ यानि शुरू करना ! 3 तरह से
और
क्रोध , मान, माया और लोभ –चार
(4) कषाय से
! यानि 3x3x3x4 =108 प्रकार से !
प्रत्येक प्राणी जाने –अनजाने में दिन भर में 108 प्रकार से पाप करता
है !
ज्योतिष के अनुसार देखें तो ग्रह 9 होते हैं और राशियाँ 12 होती हैं इस प्रकार
ये सभी ग्रह राशियों में संचार करते हुए प्रत्येक प्राणी को 108 प्रकार से अनुकूल या
प्रतिकूल फल देते हैं ! प्रतिकूलताओं को
कम करने के लिए व अनुकूलताओं को बढाने के लिए हमें जाप करना चाहिये !
इसी प्रकार देखें तो नक्षत्र 27 होते हैं और प्रत्येक नक्षत्र के चार –
चार चरण होते हैं ,इस प्रकार 27 नक्षत्रों और उनके 4 चरणों को मिलाकर के उनकी 108 प्रकार से प्रतिकूलताओं से बचने के लिए जाप करने
चाहियें !
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