तुम महान हो
तथागत बुद्ध किसी अनार्य प्रदेश में विहार
कर रहे थे ! वहाँ के लोगों ने बुद्ध को बड़ी यातनाएं दी ! कष्ट को देखकर आनन्द ने
कहा –प्रभू ! यह गाँव छोड़ दीजिए !
तथागत ने कहा –वत्स ! यदि अगले गाँव में भी
यही भेंट मिली तो ?
तो हम वह भी छोड़ देंगें !
आंतरिक पुलक और धैर्य की स्थिति में तथागत
ने कहा –वत्स ! एक यात्री दावानल बुझाने घर से निकला और रास्ते में जंगल की छोटी
छोटी चिंगारियां उछल उछल कर गिरने लगी तो क्या वह घबराकर मार्ग छोड़ देगा ? हार कर
लौट जाएगा ?
नहीं भंते ! वह अपनी ध्येय की ओर बढ़ता ही
जाएगा !आनन्द ने विनम्रता से उत्तर दिया !
वत्स –हम भी जन्म मरण की दावानल बुझाने निकले हैं ! देह कष्ट की इन चिंगारियों से
मुकाबला करते हुए आगे बढते जाना है ,निंदा प्रहार से तो क्या मरण दायी त्रास से भी
नहीं घबराना है ! आनन्द –तुम् महान हो !अपनी महत्ता को समझो ! अपने ध्येय का चिंतन
करो ....... सुख दुःख से अप्रभावित रहने वाला ही सच्चा साधक बन सकता है !
लोहा अग्नि में पड़कर स्वयं अग्नि रूप बन
जाता है ! सोना अग्नि में पड़कर शुद्ध हो जाता है ! लेकिन हीरा अग्नि में पड़कर भी
अपने स्वभाव को नहीं भूलता ! उस पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं रहता !
कुछ मनुष्य लोगे के समान कष्ट आने पर ऐसा
दिखाते है कि जैसे समूचा जीवन ही एक कष्ट गाथा बन गयी हो ? कुछ मनुष्य सोने के
समान कष्ट पाकर अधिक तेजस्वी प्रतीत होते हैं जैसे कष्ट उनके जीवन में वरदान बनकर
आये हों !
कुछ मनुष्य हीरे के समान दुखों की भावना और
कष्टों की तपन से सर्वथा अस्पर्श्य रहते हैं ! उन पर सुख दुःख का कोई प्रभाव नहीं
पड़ता !
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