पूज्य गुरुदेव व संघ के
चरणों में शत शत नमन करते हुए रत्नत्रय श्रावक संस्कार शिविर के बारे में अपने
अनुभव लिखता हूँ .......
शताधिक महिलायें व पुरुष
सायं 5.30 बजते ही जैन जति जी में प्रवेश करने लगते तो
श्वेत धवल वस्त्रों में समूह आते हुए ऐसा लगता कि रोहतक में सभी मार्ग त्यागी
वृतियों से धर्म मय हो गये हैं !
पंक्ति में बैठना ऐसा दृश्य
साक्षात नहीं देखा था, टेलीविसन पर
मुस्लिम समुदाय में नवाज के समय तो देखते हैं ,लेकिन जैन जति जी में ऐसा होगा ,सोच
नहीं सकता था !
सांयकाल अँधेरा बढ़ने लगता तो
सभी आँखें मूंदकर सीढ़ी लौ गुरुदेव से लगाते और डूब जाते ,एक ऐसे विचित्र अथाह सागर
में बहने लगते, बहते ही चले जाते , जिस ओर
गुरुदेव ले जाते !
छुटटी का दिन हो (रविवार)
,आकुलता रहित हो शिविरार्थी ,समय भी हो गोधूलि का ,न दिन हो न रात ,कुछ ही ध्यान
की विभिन्न मुद्राएं ,योग की मुद्राएं ,कोई भी प्रसंग ऐसा जो सहज ही हृदयंगम हो
जावे ,जैसे मुनि सुकुमाल जी ,समय एक घंटा नहीं दो घंटे भी !
नमोस्तु …..बारम्बार नमोस्तु गुरुदेव !
गुरु चरणों में छोटा सा सेवक
सुधीर जैन 29.09.2012
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