मेरा अनुभव –नवीन जैन (नीटू
)
प्रज्ञा योगी गुरु
गुप्तिनंदी जी की जय
समस्त आचार्य संघ की जय
भले ही फूल न दिखें पर गंध
तो पास आती है ,
फूल कहीं खिला है उसका पता
तो बताती है !
चाँद तारों में नूर है
,वृक्षों में प्राण फूल हैं ,
भक्ति से मिलता सरूर है
,तेरे बिना सब धुल है !
आचार्य गुप्तिनंदी जी
गुरुदेव जब ससंघ रोहतक आये तो हम भी गुरुदेव के स्वागत में पहुंचे ! कुछ सामजिक
कर्तव्य निभाने के लिए ,कुछ जैन होने के नाते .कुछ दिनों के संपर्क हो जाने के बाद
जाना जो हमारी मजबूरी थी अब हमारी जरूरत बन गयी ! हमें जैसे कोई चुम्बकीय शक्ति
अपनी ओर खींच रही थी ,गुरूजी की वाणी में मिठास व उनका मुस्कुराना ,सभी को बिना
किसी भेदभाव के आशीर्वाद देना ! गुरूजी हमें पूर्णिमा के समान लगे ,पूर्णिमा मतलब
“पूर्ण माँ” संघ के मुनियों का भी गुरुदेव माँ के समान ख्याल रखते हैं !
संघ में मुनिश्री महिमासागर
जी त्याग की मूर्ति हैं ,मूल भाषा कन्नड़ का ज्ञाता होते हुए भी हिन्दी में प्रवचन
इतनी सरलता से देते हैं कि मन को छू जाता है ! बाद में गुरुदेव उसका सार हमें
समझाते हैं ! मुनिश्री इस भीषण गर्मी में भी एक दिन या दो दिन छोड़कर एक दिन आहार
करते हैं यह आपके ही बस की बात है किसी और की नहीं ! मुनिश्री सरल स्वभावी हैं !
गुरुदेव गुप्तिनंदी के
सानिध्य से जीवन की बोझिलता कम हो जाती है ,जीवन हल्का हो जाता है !
भारी हो गये हलके जैसे
मूंगफली के छिलके ,
गेहूं के दाने पिसके रोटी के
फुल्के ,
मेरी श्रद्धा में आप ही झलके
,
रात भर नहीं झपकें पलकें ,
क्योंकि भक्ति दे गयी है नयी
जवानी ,
तुझसे पायी है जिंदगानी ,
मुझे अब परवाह नहीं है ,
अपने दिलोजान की ,
मै तो हुआ दीवाना बस तेरे
नाम का !
गुरुदेव के सरल मृदु स्वभाव
से जीवन बदल गया है !
हालत बदल गये हैं मेरे ,जब
से क्रोध मिटा है मेरा ,
सब पूछते हैं कैसे ,शांत हुआ
यह चेहरा ,
क्या अब मै नहीं रहा ,जमाने
के काम का
सब आश्चर्य करते हैं कैसे
,जीवन बदला जनाब का !
दसलक्षण पर्व पर गुरुदेव ने
ध्यान कराया ,प्रतिदिन अलग अलग तरह से परमात्मा से मिलने की
क्रिया की ! गुरुदेव की
ओजस्वी वाणी में कहना “आपके मूलाधार चक्र से णमोकार मन्त्र का नाम गुंजायमान होना
चाहिए” ध्यान शिविर में महासती सीता जी की जीवनी ,राजा श्रेणिक द्वारा यशोधर मुनि
पर उपसर्ग ,मन में आदिनाथ जी का मन्दिर ,सुकुमाल मुनि का जीवन चरित्र ,चंदनबाला का
आर्यिका बनने तक का सफर इतने हृदय स्पर्शी ढंग से व्याख्या की तो ऐसा लगा मानो ये
सब घटनाएँ हमारे सामने ही घटित हो रही हैं !
आपने ध्यान के माध्यम से
महावीर स्वामी के जन्मोत्सव में सौधर्म इन्द्र के साथ बहुत भक्ति करवाई
ध्यान काम नहीं विश्राम है
,समस्त क्रियाओं से विराम है,
सिर्फ राम /निष्काम ,आराम ही
आराम है
चित्त शून्य ,स्पन्द रहित
अवस्था ध्यान है !
उसी शून्यता में प्रकटता
भगवान है
गुरुदेव ने हमें बताया कि
ध्यान आत्मा को बाधक तत्वों से पृथक कराता है ,औषधि रोग का निवारण करती है ,ध्यान
भी औषधि की भान्ति है ,अंग्रेजी में ध्यान को Meditation कहते हैं ,meditation
medicine से बना है ! ध्यान की औषधि काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह
वासना को नष्ट करती है !
दसलक्षण पर्व पर गुरुदेव ने
ससंघ भक्ति पूर्वक संगीतमय विधान करवाया ,सबने खूब भक्ति की ! मुनिश्री चंद्रगुप्त
जी ने संगीतमय भक्ति करवाई ,ऐसी पहले न देखी न सुनी ! बाहर के कलाकारों को बुलाये
बिना ही आपने विधान में चार चाँद लगा दिये ! एक भी श्रावक श्राविका भी ऐसे नहीं थे
जो भक्ति में झूने ,नाचे नहीं हों !
आखिर में क्षमावाणी पर्व के
बारे में कुछ कहना चाहूँगा ! क्षमावाणी पर्व का दृश्य मुझे अंदर तक आनंदित कर गया
! गुरुदेव का पूरे संघ से क्षमा याचना करना ,मुनियों के गले मिलना ,माताजी व
क्षुल्लिका जी से क्षमा माँगना ! मुनियों का आपस में मिलकर गले से लगना ! ये सब
दृश्य हृदय को छू गये ! एक भी आँख ऐसी नहीं थी जो नम न हुई हो ! जब तक तन में
श्वाँस रहेंगी ! यह क्षमावाणी याद रहेंगी !
नवीन जैन (नीटू)
रोहतक
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