मेरा अनुभव –मंजू जैन
ओम नम: सिद्धेभ्य
परमपूज्य कवि ह्रदय
प्रज्ञायोगी जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी जी
गुरुदेव ससंघ के श्री चरणों में तीन बार नमोस्तु ,वन्दामी ,इच्छामि करते हुए उनके
पावन सानिध्य में लगने वाले दसलक्षण महाविधान व रत्नत्रय श्रावक संकार शिविर और
चातुर्मास में जो मुझे अनुभव प्राप्त हुए हैं मै उनको लिखने का प्रथम बार प्रयास
कर रही हूँ ! कृपया गलतियों की ओर ध्यान न देकर गुरुदेव मेरी उन गलतियों को क्षमा
कर देंगें ! क्योंकि गुरुदेव तो क्षमा के सागर हैं
गुरुदेव आपको शिष्यों के रूप
में एक से बढ़कर एक कोहिनूर हीरे प्राप्त हुए हैं ! गुरुदेव आप तो सर्व गुण संपन्न
हैं ,आपके गुणों का वर्णन तो मेरी लेखनी से हो नहीं सकता है !
मुनिश्री महिमासागर जी मौनी
व तपस्वी हैं ! मुनिश्री सुयश्गुप्त जी संयोजन का सारा कार्य संभालते हैं !
मुनिश्री चंद्रगुप्त जी संगीतज्ञ हैं ! आपकी व आर्यिका माता आस्थाश्री जी की कोयल
जैसी मधुर वाणी ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया है ! क्षुल्लिका धन्यश्री माताजी तो
बहुत ही सरल स्वभावी है ,प्राय: मौन ही रहती हैं !
चातुर्मास शुरू होने से पहले
मै सोचती थी कि जैन जति जी मेरे घर से दूर
है ,प्रतिदिन गुरुदेव के दर्शन कैसे होंगे ,परन्तु आपके आशीर्वाद से शिविर के
दौरान मुझे एक दिन में दो बार भी आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! प्राय:
प्रतिदिन नंगे पाँव आपके दर्शनार्थ पैदल आना और दोपहर को लगभग बारह बजे घर वापस
जाना ! इसी तरह सायं 5.30 p.m पर
जति जी पहुंचना और रात्रि में दस बजे तक घर जाना ! गुरुदेव प्राय: सुनसान ही है
,आवागमन बहुत कम है ,यह आपके आशीर्वाद का ही सुफल है कि ऐसे सुनसान रास्ते में
मुझे आते हुए और जाते हुए कोई डर नहीं लगता था ! क्योंकि प्राय: अकेली ही आती और
जाती थी !
गुरुदेव आपके आशीर्वाद के
परिणाम स्वरुप ही मैंने अभिषेक ,महाशांतिधारा ,पूजा ,प्रवचन ,आहार दान एवं
सायंकालीन ध्यान योग साधना में हिस्सा लिया ! घर में तो मेरा मन बहुत कम लगता है !
मै यह मंगल भावना भाती हूँ कि वीतराग प्रभु और आपके श्री चरणों में मेरे दर्शन हमेशा होते रहें और
देव ,शास्त्र ,गुरु पर मेरी श्रद्धा बनी रहे ! दसलक्षण धर्म के सभी गुणों को
यथासंभव जीवन में ग्रहण करने की कोशिश की है ,जैसे किसी के द्वारा कटु वचन कहने पर
भी गुस्सा नहीं किया ! सबके साथ मधुर व्यवहार किया ! विनय का गुण जीवन में
चरितार्थ किया ! तन मन वचन की शुद्धि का सत्यता से पालन किया ! मर्यादा का पालन
किया ! इन्द्रियों पर नियंत्रण रखा ! बाजार की बनी हुई वस्तुओं का (खाद्य सामग्री
) का त्याग किया ! ५१ दिन से निरंतर दिन में एक बार भोजन कर रही हूँ ! अपने द्रव्य
को धर्मतीर्थ के लिए आहार दान के लिए दिया ! शील धर्म का भी निरंतर पालन कर रही
हूँ ! ये सब मेरे आराध्य देव ,गुरु और धर्म का ही प्रताप है !
आपके सानिध्य में रहकर दस
दिन तक जो धर्म साधना की है ,उसे मैंने अपने जीवन में उतारने की कोशिश की है !
शक्ति केन्द्रों के द्वारा उर्जा का उर्ध्वारोहन एवं मन वचन काय की एकाग्रता से ध्यान में आपके द्वारा दिखाए
जाने वाले दृश्यों से मेरी अंतरात्मा इतनी
द्रवित हुई कि कई दृश्यों से आँखों में अविरल अश्रुधारा बह निकली ! प्रतिक्रमण में
हमने 4 गतियों का चौरासी लाख योनियों के जीवों से
क्षमायाचना करके अपने आपको हल्का कर लिया !
क्षमायाचना महापर्व का दृश्य
तो अपने आप में अनूठा था ! गुरुदेव का मुनिश्री से गले मिलना और मुनिश्री का
गुरुदेव से गले मिलना ! मेरे जीवन में यह पहली बार का अनुभव रहा ! सभी बहनों का
बहनों से और भाइयों का भाइयों से गले मिलना यह दृश्य अद्भुत था !जिसे देखकर सभी की
आँखों में पानी आ गया ! यह क्षमायाचना का महापर्व मुझे हमेशा याद रहेगा ! क्रोध
,मान, माया और लोभ की गांठें खुल जाने पर ही हम अपनी मंजिल अर्थात परमात्मा को प्राप्त कर
सकते हैं !
गुरुदेव ! मै यह भावना भाती
हूँ कि अगले भव में जब भी जहाँ भी मेरा जन्म हो तो मै सँसार के मायाजाल में न फसुं
और इस भव में भी आर्यिका के व्रत धारण करके स्त्री पर्याय को सफल कर सकूँ ! इसी
मंगल कामना के साथ आपके व पूरे संघ के चरणों में त्रि बार नमोस्तु ,वन्दामी और
इच्छामि कहती हूँ ! गुरुदेव आपका मंगल आशीर्वाद और आपके श्री चरणों की रज मुझे
हमेशा प्राप्त होती रहे !
श्रीमती मंजू जैन
धर्मपत्नी श्री अनिल जैन
रोहतक
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