मेरा अनुभव –मनीष जैन
जैनाचार्य गुप्तिनंदी जी के
चरणों में त्रि बार नमोस्तु ! समस्त आचार्य संघ के चरणों में शत –शत वंदन !
आचार्य श्री व संघ के बारे
में कुछ कहना तो ऐसे होगा जैसे सूरज को दीपक दिखाना व उनके बारे में लिखने लगें तो
जैसे कलम में स्याही थोड़ी पड जाए ! फिर भी
गुरुवर की आज्ञा से कुछ लिखने का साहस किया है ,कुछ गलती रह गयी हो तो अज्ञानी
अबोध समझकर क्षमा करें
गुरुवर ने दसलक्षण पर्व के
अंतर्गत रत्नत्रय श्रावक संस्कार शिविर का आयोजन किया ! यह शिविर मेरे जीवन का एक
अनोखा शिविर रहा !
गुरुवर ने शिविर के अंतर्गत
प्रात:काल में पूजन अभिषेक समस्त भक्ति के साथ काराई ! पूजन में हमें इतना आनदं
आता कि बता पाना मुश्किल है ! यह अनुभव उस हवा के समान है जिसे बता पाना सम्भव
नहीं है ! गुरुवर ने अपनी मधुर वाणी से पूजन वाचन कर हमें कृतार्थ किया ! गुरु की
वाणी इतनी मीठी लगती है कि मन कर्ता है गुरुवर यूँ ही पूजन कराते रहें और हम
निरंतर भक्ति गंगा में दुबकी लगाते रहें !
पूजन के उपरान्त गुरुवर ने
हमें हर रोज हर धर्म के विषय में इतनी सरल व सहज भाषा में समझाया कि वो हमें सदैव
याद रह सके ,कहानी व दृष्टांत के माध्यम से समझाई बात मनुष्य शायद ही भूल पाता है
!
सांयकाल में गुरुवर ने हमें
पापों के प्रक्षालन के लिए प्रतिक्रमण व आलोचना पाठ व ध्यान साधना का अभ्यास कराया
! सायं काल का सम्पूर्ण समय प्रभु की भक्ति में समर्पित किया !
पहले के समय में जैनियों की
पहचान “लौटा व छलना” मानते थे !गुरुवर ने हमें भी पीछी (सफ़ेद रूमाल )व केतली (गर्म
पानी पैर धोने को ) यह दो संयम के उपकरण देकर हमें पुरानी संस्कृति की याद दिलाई व
हमें यह कहने पर मजबूर कर दिया
गुरुओं ने याद दिलाया तो
हमें याद आया
अपना अनमोल जन्म कांच के
बदले लुटाया !
सच ही जब इन दो उपकरणों के
साथ घर से निकले तो ये लगता था शायद दस दिनों के लिए हम भी “मिनी महाराज” बन गये
हैं इतना अच्छा अनुभव रहा लिखना संभव नहीं है ! सायंकाल ऐसा दृश्य नजर आता था जैसे
गंगा ,जमना ,सरस्वती नदियाँ बह रही हैं और
नदियों में अनेकों मोती बिखरे पड़े हैं
गंगा नदी –आचार्यश्री
जमुना नदी –मुनिश्री सुयश
गुप्त जी
सरस्वती नदी –मुनिश्री
चंद्रगुप्त जी
सफ़ेद मोती – श्वेत वस्त्र
धारण किया हुए श्रावक –श्राविकाएं
मुनिश्री सुयश गुप्त जी
महाराज प्रायश्चित पाठ ,आलोचना पाठ अपनी मधुर वाणी से कराते कि मन के सभी विकार कम
होने लगते व मन को कुछ ही देर के लिए ही सही ,सम्पूर्ण शान्ति का अनुभव होता !
गुरुवर श्री जब ओम का जय घोष करते तब ऐसा लगता हम साक्षात समवशरण में बेठे हैं और
प्रभु के शरीर से औंकार वाणी का हमारे शरीर में प्रवेश हो रहा है ! जब आचार्य श्री
सातों चक्रों का ध्यान लगवाते तो सारे शरीर में एक अजीब सी उर्जा का संचार होता व
रोम रोम प्रफुल्लित हो जाता !
गुरुवर हमें मन की गहराइयों
तक ले जाते और “ओम नम:भगवते ऋषभ जिनाय:” का जाप कराते तब ऐसा अनुभव होता कि गुरुवर
ने हमारे मन रुपी वीणा के सभी तारों को एक साथ बाजा दिया हो इतना आनदं आया कि न तो समय का पता चलता न ही घर
की चिन्ता !सभी विकल्पों से दूर बस भक्ति में डूबते जाओ ,डूबते जाओ ! गुरुवर ने हर
दिन अलग अलग धर्मात्माओं के जीवन चरित्र रुपी दृष्टांत से ध्यान लगवाया तब ऐसा
लगता था कि ये सभी चित्र चलचित्र की भान्ति मेरे मष्तिष्क में घूम रहे हैं !
गुरुवर ने महावीर भगवान के गर्भ कल्याणक व जन्म कल्याणक व बाल लीला के दर्शन कराये
! इस बीच में मैंने ऐसा अनुभव किया कि कभी सौधर्म इन्द्र बनकर मैंने स्वयं प्रभु
को गोद में उठाया तो कभी खुशी से झूमकर नृत्य किया !
कर्मो का महत्व समझाते हुए
मुनिश्री सुकुमाल की करूण कहानी व चंदनबाला की करूण कहानी से आँखों में आँसू आ गये
!इससे हमें बताया कि हमें अच्छे कर्म करने चाहियें क्योंकि कर्मों का फल तो
तीर्थंकरों को भी भोगना पड़ा है और हम तो सामन्य प्राणी हैं !
भगवान पार्श्वनाथ पर उपसर्ग
की कथा ,भगवान का सात दिनों तक समता भाव
धारण करके केवल ज्ञान को प्राप्त करना ! शायद मैंने भी प्रभु के उपसर्ग का अनुभव
किया परन्तु असहाय होने के कारण कुछ न कर पाया ! मैंने इस ध्यान में साक्षात
धरणेन्द्र व पद्मावती माँ के दर्शन किये !
गुरुवर की ध्यान साधना को
मेरा बारम्बार नमन ! गुरुवर हमारे लिए
कर्मों के डाक्टर बनकर आये हैं !
सर्वप्रथम गुरुवर ने हमें
रक्षा सूत्र दिया ,रक्षा मन्त्र दिया जिससे हमारी रक्षा हो सके ! धार्मिक कार्यों
में हुई अशुद्धि के लिए चन्दन षष्टी व्रत की महिमा बतायी ! आदि व्याधि निवारण हेतु
क्षेत्रपाल विधान कराया व हमारे अंतराय कर्म का बंध कम हो इसके लिए लक्ष्मी
प्राप्ति विधान व त्रिकाल चौबीसी विधान कराया ! दस धर्म हमारे जीवन में आएं इस
कारण शिविर का आयोजन किया गया !
गुरुवर के संयम को बारम्बार
नमन करते हुए यही कहना चाहूँगा कि गुरुवर ने जो उपकार हम पर किये हैं उसके लिए हम
इस जीवन में सदा गुरु के ऋनी रहेंगें ! इस शिविर को सदा अपने जीवन में याद रखेंगें
! गुरु के बताये मार्ग पर चलने की हमेशा चेष्टा करते रहेंगें !
गुरुवर के चरणों में मेरा
नमन ......
मनीष जैन
पुत्र श्री ऋषभ जैन साइकिल
वाले
रेलवे रोड ,रोहतक
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