जय जिनेन्द्र दोस्तों !
भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
न कोई आपका मित्र है न ही
कोई शत्रु ! सब कुछ कार्य और कारण के प्रभाव से हैं ! बैरी का भी उपकार कर देने से
, मन से सम्मान करने से मित्र बन सकता है व मित्र को भी जरूरत के समय , कष्ट के
क्षण में समुचित सांत्वना भी न देने से वही मित्र शत्रु का भी रूप ले सकता है !
बाहर में जो घटता है वह
अंतर्जगत की घटना है ! बाहर में मात्र अभिव्यक्ति हो रही है ,जो बाहर चल रहा है वह
पहले अंतर्जगत में घटित होता है !
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