जय जिनेन्द्र दोस्तों !
भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या
!
जीवन क्षणभंगुर है ,अनित्य
है ! जीवन की क्षणभंगुरता और अनित्यता हमारे जीवन का लक्ष्य नही है ! अनित्यता और
क्षणभंगुरता का उपदेश केवल इसलिए है कि हम जीवन में और धन वैभव में ,सुख सुविधाओं
में आसक्त न बनें ! आसक्ति का न होना ही भारतीय संस्कृति की साधना का मूल लक्ष्य
है ,परम उद्देश्य है !
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