जय जिनेन्द्र दोस्तों !
भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
सत्य की निर्मल पावन धारा
सर्वप्रथम मन में बहनी चाहिए ,फिर वचन में और फिर उसके बाद आचरण में ! यदि मन में
अलग विचारधारा चल रही है ,वाणी से अलग विचार उगले जा रहे हैं और आचरण दुसरे ही रूप
में किया जा रहा है तो वस्तुत: वह व्यक्ति सत्यनिष्ट नही है ! सत्य जब तक जीवन के
अणु अणु में व्याप्त नही होता तब तक उसमे चमत्कार घटित नही हो सकता !
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