जय जिनेन्द्र दोस्तों !
भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
एक साथ करोड़ों शत्रुओं से
जूझने वाले कोटि भट्ट वीर भी अपने मन की वासनाओं के आगे थर थर कांपने लगते हैं
,उनके इशारे पर नाचने लगते हैं ! हजारों वीर धन के लिए प्राण दे देते हैं तो
हजारों सुन्दर स्त्रियों पर मरते हैं ! रावण जैसा विश्व विजेता वीर भी अपने अंदर
की वासना से मुक्ति न पा सका ! अतएव जैन दर्शन कहता है कि अपने आप से लड़ो ! अंदर
की काम वासनाओं से लड़ो ! बाहर के शत्रु इन्ही के कारण जन्म लेते हैं विष वृक्ष के
पत्ते नोचने से काम नही चलेगा ! जड उखाडीये ,जड़ ! जब अन्तरंग ह्रदय में कोई
सांसारिक वासना ही न होगी ,काम, क्रोध, लोभ आदि की छाया ही न रहेंगी ,तब बिना कारण
बाह्य शत्रु क्योंकर जन्म लेंगें ?
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