मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Saturday, 28 April 2012

जीविका व जीवनोंद्धार

बहत्तर कलाओं मे दो प्रमुख हैं ,जीविका व जीवनोंद्धार पर हम सिर्फ जीविका के पीछे पागल हो रहे हैं !जीवनोद्धार का ध्यान ही नही होता है ! आदमी अपने जीवन के विषय मे बहुत प्रकार की योजना बनाता है ,मुझे ये करना है ,मुझे वो करना है सब कुछ सोचता है पर कभी ये नही सोचता कि मुझे करना ही करना है कि अन्त मे मरना भी है ! कभी न कभी तो मरूंगा और कब मरूँगा कोई पता नही है ! हो सकता है कि ,हमें जो करना है हम जो सोच रहे हैं वह हम कर पायें या नही और बीच मे ही मर जाएँ ,इसीलिए इससे पहले कि मरण हो तो तुम सुमिरण को ध्यान मे रखो ! मृत्यु एक पल ही आती है लेकिन उस मृत्यु की अनिवार्यता और अपरीहार्यता  को समझने वाला ही अपने जीवन का सही सत्कार कर सकता है ! जो व्यक्ति शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता का बोध रखते हैं वे कभी सँसार मे उलझते नही हैं !उनका जीवन बहुत संतुलित और सधा हुआ रहता है !वो संसार मे रहते तो हैं पर अपने जीवन को सधा हुआ बनाए रखते हैं ! सम्यक दृष्टि की यही विशेषता होती है कि वो जानता है  कि मै यहाँ आया हूँ और एक दिन मुझे जाना है और जब मुझे यहाँ से जाना है तो मुझे वही करना है जो मेरे लिए सबसे करणीय है ! मुझे क्या करना है और क्या नही करना है ये मनुष्य को स्वयं सोचना चाहिए ! सँसार से भय होने का अर्थ है अपने जीवन की  प्राथमिकता

परमार्थ को शामिल कर लेना !    

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