मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday, 28 February 2013

ना इस किनारे का पता न उस किनारे का पता !


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
ना इस किनारे का पता न उस किनारे का पता ! 

Without knowing the beginning or the end , the man sits down to measure up the sky.

Wednesday, 27 February 2013

“रमता जोगी बहता पानी !”


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
किसी ने कहा है “रमता जोगी बहता पानी !”
रमता जोगी बहता पानी जैसी कहावत में यही बात कही गई है कि साधु  की चलना –फिरना  नदी के बहाव जैसी है जिसे रोका नहीं जा सकता !  पानी रुका तो निर्मल, पावन और शुद्ध नहीं रहेगा ! इसी तरह मुनियों साधु ,साध्वियों  के पैर थमे तो ज्ञानगंगा का स्रोत भी अवरुद्ध हो जाएगा।
बहुत कुछ चलचित्र के जैसा  चल रहा है मन की आंखों के आगे पर रमता जोगी और बहता पानी कब किसी के रोके रुके हैं! वो बाईस वर्ष पूर्व एक  19 वर्षीया बालक का आचार्य श्री कुंथुसागर जी के चरणों मे दीक्षा हेतु श्रीफल अर्पण , आचार्यश्री का उन्हें दीक्षा दे कर मुनि गुप्तिनंदी का संबोधन देना , वर्षों बाद बडौत मे पिछले साल आचार्य गुप्तिनंदी जी के रूप मे उनके दर्शन , पानीपत मे विधान के दौरान उनके दर्शन , पानीपत से रोहतक विहार करते हुए पूरा रास्ता जहाँ भी संभव हो सका मै विहार मे उनके साथ रहा ,उनका पावन सानिध्य , रोहतक मे उनके पधारने पर लगातार यथा संभव उनके दर्शन और कठिन घरेलु परिस्थितियों के बावजूद चातुर्मास कैसे पंख लगाकर उड़ गया पता ही नहीं चला ! उसके बाद भी रानीला मे व वहाँ से आकर लगातार ज्ञान गंगा का बहना जारी रहा ! 
 मानव मन की ये विशेषता है कि जितना उसे प्राप्त होता है वह उससे अधिक पाना चाहता है ! जितना मिलता है उसमे संतुष्टि प्राप्त नहीं कर पाता ! कल  जब आचार्य जी ने कहा कि कल दिनांक 27.2.2013  को उनका विहार रोहतक से दिल्ली के लिए होगा तो उपस्थित जन समूह मे से काफी लोगों  की आँखों मे उदासी स्पष्ट झलक रही थी ! कुछ की आँखों मे नमी थी तो कुछ ये सोचकर संतुष्ट थे कि जो
पाया , जो सीखा उसे ही अपने जीवन मे उतार पायें तो बहुत होगा !
 मौसम की प्रतिकूल परिस्थिति और स्वास्थ्य भी अनुकूल न होने के बावजूद आचार्य श्री ने विहार की घोषणा करते हुए कहा साधु तो विहार करते हुए ही उचित रहते हैं ,जिस प्रकार सूर्य ,चन्द्र और सितारे एक स्थान पर नहीं रहते उसी तरह साधु का कर्तव्य है कि गतिशील बने!
गुरुदेव की ये धीर गंभीर मुद्रा न जाने कब वापस रोहतक में देखने को मिलेगी! धन्य हैं मेरे ये चर्म चक्षु जिन गुरु की मुनि दीक्षा के गवाह हैं (इन की मुनि दीक्षा 22 जुलाई 1991 को आचार्य श्री कुंथूसागरजी के द्वारा इसी चातुर्मास स्थल पर हुई थी ) उन्हें गुरुदेव का चातुर्मास रोहतक में पाने का सौभाग्य मिला !
ऐसे प्रज्ञायोगी आचार्य गुप्तिनंदी जी व संघ के श्री चरणों में  मेरा शत शत नमन ! वंदन !अभिनन्दन!
गुरुदेव ! आपके सानिध्य  में जो समय बीता वह जीवन में अविस्मरणीय  रहेगा ! आपके सानिध्य में  आपकी ही दी हुई शक्ति से मै 21 साल बाद मै किसी 10 दिन के विधान में पूर्ण रूप से बैठ पाया ,जब दसलक्षण पर्व के दौरान आपने दसलक्षण संस्कार व ध्यान शिविर का आयोजन किया ! प्रात:कालीन कक्षा में आपसे जो कुछ भी सीख पाया ,उसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करूँगा !
गुरुदेव ! पारिवारिक , सामाजिक कर्तव्यों के निर्वहन में आपसे मै ज्यादा कुछ न सीख पाया ,न कुछ सेवा सुश्रुषा कर पाया ,जाने अनजाने में जो भूल की हैं, कई बार गुरुवर का कहा हुआ भी पूरा नहीं कर पाया ! उन  सब के  लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
अपनी शाम के बारे मे लिखूं तो  सोच कर उदास हो जाता हूँ कि व्यवसाय से निपटते ही कदम आप ही आप गुरुवर के प्रवास स्थान  की ओर मुड जाते थे ! अब मेरी इन शामों का क्या होगा जिन्हें आपकी आदत सी पड गयी है ?
यही प्रार्थना वीर से ,अनुनय से कर जोड़ ,
हरी  भरी   धरती   रहे ,  यूँ  ही   चारों  ओर !
बस यही भावना है कि गुरुओं के प्रति,आगम के प्रति  मेरी श्रद्धा और गहरी हो , समर्पण गहरा हो और अन्त मे समाधि मरण प्राप्त हो !

Tuesday, 26 February 2013

“क्षमा वीरस्य भूषणम्”


जय  जिनेन्द्र मित्रों ..प्रणाम ! शुभ प्रात:
“क्षमा वीरस्य भूषणम्” 

अँधेरे को कभी अँधेरे से समाप्त नहीं किया जा सकता ! अँधेरे को समाप्त करने के लिए चिराग रोशन करना ही होगा ! दर्पण मे मुख देखने के लिए जिस प्रकार दर्पण का धुल रहित होना आवश्यक है ,उसी प्रकार क्षमा करने वाले का मन भी उतना पावन होना चाहिए जितना कि उस की वाणी और तन !  सच्चे ह्रदय से मांगी गयी क्षमा तो कठोर से कठोर ह्रदय को भी पिघला सकती है ,फिर जो तुम्हारे मित्र ही हैं वो तो एक आवाज मे ही दौड़े न चले आयें तो कहना  !

Monday, 25 February 2013

मेरे सभी अपराध क्षम्य हों !


जय जिनेन्द्र मित्रों ...प्रणाम ! शुभ प्रात: !
हे प्रभू  !  मेरे सभी अपराध क्षम्य हों ! आप प्रजापति हो दया निधान ! हम
 प्रजा हैं ,दया के पात्र ! आप पालक हो ,हम बालक हैं ! ये सब आपकी ही निधि है ,हमें आपकी ही सन्निधि है ,निकटता है ! आप ही एक शरण रूप हैं! 

आर्यिका माँ प्रशान्तमति माताजी “माटी की मुस्कान” मे ..गुरुदेव आचार्य विद्यासागर जी की “मुकमाटी” पर आधारित !

Sunday, 24 February 2013

committment

Good morning friends jai jinendra 
COMMITMENT means concentration of all your energy at some particular point.Commitment does not just mean becoming determined in the heart about something.

monkhood


Good morning friends .......jai jinendra 
Meditate when you are ALONE and love when  you are in a COMPANY.
If you accomplish both simultaneously, monkhood will be achieved in domestic life itself.