प्रशंसा व पुरस्कार एक ऐसी
संजीवनी है जो अनजाने ही अंतरात्मा में नवीन चेतना का संचार कर देती है ! यह एक
ऐसा टानिक है जिसके बिना व्यक्ति का विकास ही अवरुद्ध हो जाता है !वस्तुत: यह मानव
मात्र की यह मानसिक खुराक है जिसके बिना मानव में काम करने का उत्साह ही उत्पन्न
नहीं होता ! जिस तरह मानव का शरीर संतुलित भोजन के अभाव में रोगी हो जाता है
,कमजोर हो जाता है ; उसी तरह संतुलित प्रोत्साहन ,प्रशंसा की कमी के कारण मानव की
कार्य क्षमता कम हो जाती है !
प्रशंसा व प्रोत्साहन ऐसी
रामबाण औषधि है जो हताश ,हतोत्साहित व निरुत्साहित मनुष्य में भी आशा, उमंग व
उत्साह भर देती है !प्रशंसा की खुराक देकर आप एक भूखे व्यक्ति से भी मनचाहा और
छोटा से छोटा काम करवा सकते हैं !
दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो
प्रशंसा पाने और यश खाने की आदत एक बड़ी भारी मानवीय दुर्बलता भी है ,जिसका चतुर
चालाक व वाकपटु लोग दरुपयोग भी कर लेते हैं ! स्वार्थी लोग इस मानवीय कमजोरी को
पहचान कर झूठ –मुठ प्रशंसा करके अपने स्वार्थ सिद्ध करवाने के प्रयास भी करते हैं
! अत: यश की भूख व प्रशंसा की प्यास बुझाते समय प्रशंसक के ह्रदय की पवित्रता की
पहचान और अपनी योग्यता का आकलन एवं आत्म निरीक्षण तो कर ही लेना चाहिए !
बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो
इसका उपयोग एक चतुर वैद्य की तरह करते हैं कि किसको/ कब /कितनी मात्रा में प्रशंसा की खुराक दी जाए ? जो कि उसके सर्वांगीण
विकास में सहायक हो सके !