जय
जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
जब सुईं से काम चल सकता है
तलवार का प्रहार क्यूँ ?
जब फूल से काम चल सकता है
शूल का व्यवहार क्यूँ?
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फूल ने पवन को
प्रेम से नहला दिया और
पवन ने फूल को
प्रेम से हिला दिया !
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
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