मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday, 10 July 2013

आवेश आवेग का सहारा



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
आवश्यक अवसर पर
सज्जन साधु पुरुषों को भी
आवेश आवेग का सहारा लेकर




कार्य करना पड़ता है
अन्यथा
सज्जनता दूषित होती है
दुर्जनता पूजित होती है
जो शिष्टों की दृष्टि में इष्ट कब रही ?

आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज मूक माटीमें

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