जय
जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
अपनी कसौटी पर अपने को कसना
अपनी कसौटी पर अपने को कसना
बहुत सरल है
पर ....
कहीं कहीं निर्णय
लेना बहुत कठिन है
क्योंकि अपनी आँखों
की लाली
अपने को कहाँ दिखती
है ?
एक बात और भी है कि
जिस का जीवन औरों के
लिए
कसौटी बना हो
वह स्वयं के लिए भी
बने
ऐसा कोई नियम नहीं है
ऐसी स्थिति में
प्राय:
मिथ्या निर्णय लेकर
ही
अपने आपको प्रमाण की
कोटि
में स्वीकारना होता
है !
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
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