जय जिनेन्द्र बंधुओं
! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
इस युग के
दो मानव
अपने आप को
खोना चाह्ते हैं ....
एक
भोग राग
को चुनता है
और एक
योग त्याग को
धुनता है
कुछ ही क्षणों में
दोनों होते
विकल्पों से मुक्त
फिर क्या कहना
एक शव के समान
गिरा पड़ा है
और एक
शिव के समान
खरा उतरा है !
******************
क्षमा धरना क्षमा करना
धर्म है साधक का ,धर्म में रमा करना
*********************************
अपनी प्यास बुझाए बिना
औरों को जल पिलाने का संकल्प
मात्र कल्पना है ....मात्र कल्पना है !
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
इस युग के
दो मानव
अपने आप को
खोना चाह्ते हैं ....
एक
भोग राग
को चुनता है
और एक
योग त्याग को
धुनता है
कुछ ही क्षणों में
दोनों होते
विकल्पों से मुक्त
फिर क्या कहना
एक शव के समान
गिरा पड़ा है
और एक
शिव के समान
खरा उतरा है !
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क्षमा धरना क्षमा करना
धर्म है साधक का ,धर्म में रमा करना
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अपनी प्यास बुझाए बिना
औरों को जल पिलाने का संकल्प
मात्र कल्पना है ....मात्र कल्पना है !
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
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