जय
जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
मुनियों को आहार दान
के समय
पात्र से प्रार्थना हो
पर अतिरेक नही
इस समय सब कुछ
भूल सकते हो
पर विवेक नही
तन मन और वचन से
दासता की अभिव्यक्ति हो
पर उदासता की नही
अधरों पर मंद मुस्कान हो
पर परिहास नही
उत्साह हो ,उमंग हो
पर उतावली नही
अंग - अंग से
विनय का मकरंद झरे
पर दीनता की गंध नही
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
No comments:
Post a Comment