जय
जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
पर को परख रहे हैं
अपने को तो परखो ....जरा
परीक्षा लो अपनी अब
बजा–बजा कर देख लो
स्वयं को
कौन सा स्वर उभरता है
वहां ?
सुनो उसे अपने कानों
से
काक का प्रलाप है ,
या
गधे का पंचम आलाप ?
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
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