जय जिनेन्द्र
बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !शुभ संध्या !
गुरुदेव ने मुझ से कहा है कि
कहीं किसी को भी
कोई वचन न देना
क्योंकि तुमने गुरु को वचन दिया है
हाँ ! हाँ !
यदि कोई भव्य
भोला भाला – भूला भटका
अपने हित की भावना से
विनीत भाव से भरा
दिशा बोध चाहता हो तो
हित मित मिष्ट वचनों से
प्रवचन देना उसे
परन्तु कभी किसी को
भूलकर स्वपन में भी
वचन मत देना !
आचार्य
श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
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