मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Friday, 26 July 2013

जय जिनेन्द्र



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !शुभ संध्या !

जिस प्रकार किसान फसल आने पर पहले पौष्टिक धान को बीज के रूप में बचा लेता है व शेष का भोग करता है ,उसी प्रकार भव्य जन धर्म के फल रूप में प्राप्त विषय भोगों को उदासीन भाव से सेवन करते हैं !

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