मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday, 30 January 2014

अपने लिए जिये तो क्या जिये .........

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !


क्या मार सकेगी मौत उसे औरों के लिए जो जीता है ,
मिलता है जहाँ का प्यार उसे औरों के जो आँसू पीता है !
होना होता है अमर जिन्हें वो लोग तो मरते ही आये,
औरों के लिए अपना जीवन कुर्बान वो करते ही आये !

धरती को दिया जिसने बादल वो सागर कभी ना रीता है ,

Wednesday, 29 January 2014

कर्मों का है फल सब कुछ

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !

भगवान न किसी को कुछ देते हैं ,न ही कुछ छीनते हैं ! न किसी का बुरा करते हैं ,न ही भला ! सब कुछ पूर्वकृत कर्मों का फल है जो हमें भोगना ही पड़ता है ! भगवन की भक्ति से आगे के लिए शुभ कर्मों का बंध होता है ,मनोबल बढ़ता है व कठिन परिस्थितियों से जूझने की क्षमता का विकास हो जाता है ! 

Wednesday, 22 January 2014

भाव से ही बन्धन होता है , भाव से ही मुक्ति

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !
भाव से ही बन्धन होता है , भाव से ही मुक्ति ! मन ही बन्धन एवं मुक्ति का कारण है ! बन्धन शरीर से नही होता बल्कि शरीर के निमित्त से मन में जो विकल्प होते हैं , जो राग द्वेष रुपी परिणाम होते हैं ,उन परिणामों एवं विकल्पों के कारण ही कर्म बंध होता है !

आँखें जब तक हैं , तो  वे रूप को ग्रहण करेंगीं ही ! अच्छा या बुरा जो भी दृश्य उनके सामने आएगा ,उसे देखेंगीं ही !साधक बनने के लिए सूरदास बनने की आवश्यकता नही है किन्तु आवश्यक यह है कि जो भी अच्छा या बुरा रूप सामने आये उसे वे ग्रहण भले ही करें ,किन्तु उसके सम्बन्ध में राग द्वेष का भाव न आये !मन में किसी प्रकार का दुर्विकल्प न हो तो आँखों से कुछ भी देखने में कोई हानि नही है ! यही स्थिति अन्य इन्द्रियों के विषयों में भी कही जा सकती है !शरीर तथा इन्द्रियां आत्मा का न हित कर सकती हैं न अहित !

Sunday, 19 January 2014

घृणा व द्वेष क्यों ?

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !


जैन दर्शन कहता है कि सँसार की कोई भी आत्मा ,चाहे वह अपनी वर्तमान दशा में कितने भी नीचे स्तर पर क्यों न हो , भूलकर भी उससे घृणा व द्वेष नही करना चाहिए ! प्रत्येक आत्मा में अनन्त अक्षय गुणों का भण्डार छिपा हुआ है जिसका कभी न अन्त हुआ है न होगा , बस जरूरत है आत्मा में परमात्म भाव को प्रकट करने का ! जीवन की गति व प्रगति को रोकना नही है ,बल्कि उसे अशुभ से शुभ की ओर व शुभ से शुद्ध की ओर मोड देना है ! 

Saturday, 18 January 2014

जड उखाडीये ,जड़

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !



एक साथ करोड़ों शत्रुओं से जूझने वाले कोटि भट्ट वीर भी अपने मन की वासनाओं के आगे थर थर कांपने लगते हैं ,उनके इशारे पर नाचने लगते हैं ! हजारों वीर धन के लिए प्राण दे देते हैं तो हजारों सुन्दर स्त्रियों पर मरते हैं ! रावण जैसा विश्व विजेता वीर भी अपने अंदर की वासना से मुक्ति न पा सका ! अतएव जैन दर्शन कहता है कि अपने आप से लड़ो ! अंदर की काम वासनाओं से लड़ो ! बाहर के शत्रु इन्ही के कारण जन्म लेते हैं विष वृक्ष के पत्ते नोचने से काम नही चलेगा ! जड उखाडीये ,जड़ ! जब अन्तरंग ह्रदय में कोई सांसारिक वासना ही न होगी ,काम, क्रोध, लोभ आदि की छाया ही न रहेंगी ,तब बिना कारण बाह्य  शत्रु  क्योंकर जन्म लेंगें ?

Wednesday, 15 January 2014

जीवन क्षणभंगुर है ,अनित्य है

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या  ! 


जीवन क्षणभंगुर है ,अनित्य है ! जीवन की क्षणभंगुरता और अनित्यता हमारे जीवन का लक्ष्य नही है ! अनित्यता और क्षणभंगुरता का उपदेश केवल इसलिए है कि हम जीवन में और धन वैभव में ,सुख सुविधाओं में आसक्त न बनें ! आसक्ति का न होना ही भारतीय संस्कृति की साधना का मूल लक्ष्य है ,परम उद्देश्य है ! 

Monday, 13 January 2014

एकान्त



जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या  !

प्रत्येक वस्तु के दो पक्ष होते हैं ! मनुष्य की दृष्टि पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के कारण अक्सर एक ही पक्ष पर टिकती है !किसी एक ही पक्ष को देखना ,उसी का आग्रह रखना एकान्त है ! आज विश्व में द्वंदात्मक स्थिति का मूल कारण एकांत ही है ! जहाँ जहाँ भी एक पक्षीय दृष्टि होगी ,वहाँ वहाँ ही कलह की सम्भावना बढ़ जायेंगी ! किसी एक पक्ष से वस्तु पूर्ण नही हो सकती ! दो पक्ष हर पूर्ण वस्तु की वास्तविकता है ! फिर दो पक्षों के स्वीकार्य में संकोच क्यों ?

Sunday, 12 January 2014

सत्य

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !


सत्य की निर्मल पावन धारा सर्वप्रथम मन में बहनी चाहिए ,फिर वचन में और फिर उसके बाद आचरण में ! यदि मन में अलग विचारधारा चल रही है ,वाणी से अलग विचार उगले जा रहे हैं और आचरण दुसरे ही रूप में किया जा रहा है तो वस्तुत: वह व्यक्ति सत्यनिष्ट नही है ! सत्य जब तक जीवन के अणु अणु में व्याप्त नही होता तब तक उसमे चमत्कार घटित नही हो सकता ! 

Saturday, 11 January 2014

चंचलता

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !


चंचलता व्यक्ति को बाह्य जगत की और खींचती है ! चंचलता कम होती है तो एक नए वातावरण में जीने का अवसर मिलता है ! शरीर , वाणी और मन की चंचलता समाप्त हो जाए तो एक नयी दृष्टि ,एक नया दृष्टिकोण ,एक नयी दुनिया और जीवन में एक नयी दिशा का पदार्पण होता है !    

Thursday, 9 January 2014

बोलना अच्छा या मौन रहना अच्छा

बोलना अच्छा या मौन रहना अच्छा 
जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !

बोलना अच्छा या मौन रहना अच्छा ? हमें यह विवेक करना है कि कहीं कहीं मौन करना अच्छा व कहीं पर बोलना भी अच्छा ! जो व्यक्ति विवेक नही कर पता वह समस्या पैदा कर लेता है ! यह विवेक भी करना होता है कि लाभ अच्छा है या अलाभ ! हम यह नही कह सकते हैं कि लाभ अच्छा ही है और यह भी नही कह सकते कि अलाभ अच्छा नही ही है ! कभी कभी ऐसा होता है कि अलाभ व्यक्ति को आगे बढ़ा देता है ! कुछ मिला नही ,ये भाव आते ही मन में कुछ नया करने की भावना जागती है और व्यक्ति बहुत आगे बढ़ जाता है !

Wednesday, 8 January 2014

चिन्तन

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !


चिन्तन के द्वारा बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है ! व्यक्ति की सुझबुझ और चिन्तन से ऐसा मार्ग निकलता है कि समस्या का समाधान हो जाता है ! चिन्तनशुन्य व्यक्ति समस्या को उलझा देता है ,उसका कभी समाधान नही कर पाता !

Tuesday, 7 January 2014

न कोई आपका मित्र है न ही कोई शत्रु !

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !

न कोई आपका मित्र है न ही कोई शत्रु ! सब कुछ कार्य और कारण के प्रभाव से हैं ! बैरी का भी उपकार कर देने से , मन से सम्मान करने से मित्र बन सकता है व मित्र को भी जरूरत के समय , कष्ट के क्षण में समुचित सांत्वना भी न देने से वही मित्र शत्रु का भी रूप ले सकता है !


बाहर में जो घटता है वह अंतर्जगत की घटना है ! बाहर में मात्र अभिव्यक्ति हो रही है ,जो बाहर चल रहा है वह पहले अंतर्जगत में घटित होता है !