साधना चाहे आध्यात्म जीवन की हो या बहिर्जीवन की ,
वह कष्टों की अग्नि से गुजर कर निखरती है !
आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओंको यथोचित नमोस्तु,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
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