धर्मात्मा व्यक्ति नमक के पुतले के समान ही होता है !
वह दया ,प्रेम करुणा ,अहिंसा का पुतला होता है ! उसके
प्रत्येक रोम रोम मे धर्म की भावना भरी हुई होती है !
आचार्य 108 श्री पुष्पदंतसागर जी
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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