भारतीय परम्परा मे नारी को बहुत सम्मान दिया गया है ! यह सत्य है कि एक जमाने मे नारी को बहुत कोसा गया , लेकिन जब हम भारतीय संस्कृति के इतिहास पर विचार करते हैं तो हमें देखने को मिलता है कि जो सम्मान नारी को भारत मे दिया गया है वह अन्यत्र कहीं नही दिया गया ,क्योंकि वह नारी नही ,वह नर को जन्म देने वाली भी है ! नारी न हो तो नर का जन्म नही हो सकता !वह तीर्थंकर भगवंतों जैसे श्रेष्ठ पुरुषों को जन्म देती है !पुरुषों के पास वह पात्रता नही है कि वह किसी को जन्म दे सकें ,लेकिन नारी को यह प्रकृति का वरदान मिला है !
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ! शोच्यनते तु यत्रैता विनस्त्यासु हि तत् कुलम !
जहाँ नारियों कि पूजा होती है ,उस कुल मे देवता करते हैं और जिस कुल मे नारी शोकमग्न होती है वह कुल विनष्ट हो जाता है ,उस कुल का सर्वनाश हो जाता है ! इससे बड़ा गुणगान और कहाँ होगा ?लेकिन यह हर किसी के लिए नही कहा गया है ,यह उसके लिए कहा गया है ,जो नारी निर्दोष हो ,जो नारी गुणवान हो ,जिसके जीवन मे आदर्श हों ,ये सारे विशेषण उसी पर लागू होते हैं
जैन परम्परा मे तो नारी को बहुत अधिक सम्मान दिया गया है ,हमारे तीर्थंकरों ने नारी को अपने सम्वशरण मे भी स्थान दिया है ,उन्हें शिक्षित दीक्षित किया और उनके जीवन के उत्थान और उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त किया ! राजा ऋषभदेव ने जो अंक और अक्षर विद्या दी ,वो पहले अपनी पुत्रियों ब्राह्मी व सुंदरी को दी ,भारत व बाहुबली को नही दी ! पहले शिक्षा नारी को दी गयी क्योंकि नारी की शिक्षा ,नारी के संस्कार से घर मे मे बहुत कुछ परिवर्तन आ सकता है !
मुनिश्री प्रमाण सागर जी “दिव्य जीवन का द्वार “ मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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