तरु अशोक के निकट मे , सिंहासन छाविदार !
तीन छत्र सिर पर ढूरें , भामंडल पिछवार !
दिव्य ध्वनि मुखते खिरे ,पुष्प वृष्टि सुर होए !
ढोरें चौसंठ चमर जख , बाजे दुन्दुभि जोय !
1.तीर्थंकर भगवान के निकट अशोक वृक्ष होता है!
2.अशोक वृक्ष के नीचे सिंहासन होता है !
3.भगवान के सिर पर तीन छत्र होते हैं !
4.भगवान के पीछे भामंडल होता है !
5.भगवान जिनेन्द्र के मुखकमल से दिव्य ध्वनि खिरती है !
6.समवशरण मे देवों द्वारा पुष्प वृष्टि होती है !
7.देव भगवान के ऊपर चौसंठ(64) चमर ढोरते हैं !
8.दुन्दुभि बाजे समवशरण मे बजते रहते हैं !
आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
No comments:
Post a Comment