हर किसी कि पीर पर ,
गिर जाएँ यदि दो बुँदे ,
तो वह ,
नीर की बुँदे नही,
सीप के मोती हैं !
आखिर नीर ही तो,
मोती बनता है ,
सीप के मुख मे !
पर /अगर ,
स्वयं की पीर पर ,
नयनों से नीर बह जाये तो ,
तो ,परम कायरता है वह !
नीर नही ,जहर है !वह ,
सर्प के मुख का ,
आखिर नीर ही तो जहर बनता है ,
सर्प के मुख मे !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे
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