प्रेम व क्षमा से बैर धुलता है !
विपरीतता मे अनुकूलता देखना ही जीने की कला है !
तुम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हो!
वे समृद्ध हैं जिनकी कोई मांग नही !
संसार से भागो नही ,भ्रम से जागो !
पर द्रव्य को अपना मानना ही दुःख का कारण है !
तुम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हो!
वे समृद्ध हैं जिनकी कोई मांग नही !
संसार से भागो नही ,भ्रम से जागो !
पर द्रव्य को अपना मानना ही दुःख का कारण है !
माँ श्री कौशल जी की पुस्तक "सिर्फ देखो बोलो मत " से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
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