आस्था कोई झाड नही , जो तूफानों से गिर जाए !
दृष्टि सूर्यमुखी का फूल नही .सूर्य देख वह फिर जाए !
यथार्थ समर्पण मे कोई , शर्त नही होती है भाई ,
श्रद्धा संकल्प यथावत है ,जीवन चाहे संकट मे घिर जाए !
इसीलिए आचार्य कहते हैं :-
पंच परम पद ध्यान से जग मे कीर्ति होए
जो इनको निज मे ,लखे, कर्म बंध न होए !
आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
दृष्टि सूर्यमुखी का फूल नही .सूर्य देख वह फिर जाए !
यथार्थ समर्पण मे कोई , शर्त नही होती है भाई ,
श्रद्धा संकल्प यथावत है ,जीवन चाहे संकट मे घिर जाए !
इसीलिए आचार्य कहते हैं :-
पंच परम पद ध्यान से जग मे कीर्ति होए
जो इनको निज मे ,लखे, कर्म बंध न होए !
आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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