अभी अभी मैंने ये अनुभव किया है
प्रतिकूलता मे भी सहज समरस पिया है
अनुकूलता कभी कभी स्वभाव प्रतिकूल बनाती है
प्रतिकूलता भी भव्यों मे स्वानुभव जगाती है !
आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
प्रतिकूलता मे भी सहज समरस पिया है
अनुकूलता कभी कभी स्वभाव प्रतिकूल बनाती है
प्रतिकूलता भी भव्यों मे स्वानुभव जगाती है !
आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
No comments:
Post a Comment