गुरु से शिष्य की कौन सी बात अनजानी है !
सागर को मालूम है बूँद मे कितना पानी है !
गगन मे उड़कर क्यों दिखाते हो अपनी उड़ान को !
यही तो संसारी प्राणी की एक नादानी है !
आचार्य श्री 108 श्री पुष्पदंत सागर जी !
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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