जिनवर भक्ति जो करे मन वच तन कर लीन !
इस भव मे दुःख न लहे ,न भव धरे नवीन !
आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी "स्तुति विद्या" ग्रन्थ मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
इस भव मे दुःख न लहे ,न भव धरे नवीन !
"हे तेजपुंज अधिपति !मै आपकी श्रद्धा मे डूबा रहूँ ,आपकी अर्चन मात्र शेष रहे ! बाकी सब मै भूल जाऊं,मेरे कर अन्जलिबद्ध होकर आपके समक्ष मेरी अकिंचन भक्ति का नैवैद्द्य लिए रहें !कानों से सदा आपकी पवित्र कथा सदैव सुनाई देती रहे !और आँखें त्राटक सिद्ध होकर ,अनिमेषवृत्ति से आपके दर्शन का लाभ लेती रहें ,हे देव !मुझ मे किसी प्रकार का व्यसन न हों ! अगर हो तो आपकी निर्मल भक्ति करने का, स्तुति करने का व्यसन रहे एवं यह मस्तक सदैव आपके चरणों मे झुकता रहे !ये मेरी भावना सदा चरितार्थ हो !मै आपके प्रताप से तेजस्वी ,सूजन व पुण्यवान होऊं"
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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