जान सके तो जान
तेरे मन में छुप कर बेठे ,देख तेरे भगवान
इधर उधर क्यों ढूंढें प्रभु को ,मन में
तेरे समाया
विषय कषाय आवरण हटा दे ,तुझ में उसकी छाया
राग द्वेष को मन में ना ला ,सिद्ध रूप को
जान
जान सके तो जान ..
एक पत्थर को काट काट कर ,मूर्ति रूप घडाया
उस पत्थर में मूर्ति छिपी थी ,थोडा अंश
हटाया
जैसे तेरे प्रभु प्रकट हैं ,मन में भी
भगवान
जान सके तो जान ...
मन्दिर मन्दिर मुरत उसकी ,दर्शन निशदिन
पाते
जिन प्रभु की उस शांत मूर्ति से ,सीख नहीं
कुछ पाते
मार्ग बताया था जो उसने ,उसको भी तो जान
जान सके तो जान ....
तेरे
मन में छुप कर बेठे ,देख तेरे भगवान
माँ श्री कौशल जी की पुस्तक “ह्रदय के पट
खोल” से
No comments:
Post a Comment