माँ और मित्रता
छत्रपति शिवाजी के गुरु गंभीर रूप से बीमार
पड गये ! उनके शिष्यों गुरु से हमेशा यह कहते थे कि आप शिवाजी को ज्यादा
सम्मान देते हैं ! गुरु जी बहुत कष्ट में
थे ! उन्होंने अपने शिष्यों से कहा –मेरी बीमारी अब शायद ही ठीक हो क्योंकि जो इस
बीमारी की दवा है वह लानी बहुत मुश्किल ही है !
शिष्यों ने चकित हो कर पूछा –गुरुवर ! ऐसी
कौन सी दवा है ,आप हमें बताएं ! हम यथा सम्भव लाने का प्रयास करेंगें ! गुरु ने
कहा –मै केवल शेरनी का दूध लेकर ही ठीक हो सकता हूँ ! क्या तुममे से किसी में भी
वह लाने का सामर्थ्य है ? सभी शिष्य एक दूसरे की शक्लें देखने लगे ! तब गुरु जी ने
शिवाजी को बुलाया और तुरंत ही शिवाजी ने वह कार्य स्वीकार कर लिया !
वह जंगल में गये और खोजते हुए एक जगह
उन्हें शेर के बच्चे दिखाई दिये ! बच्चों को देखकर उन्हें लगा कि यहाँ शेरनी जरूर
होनी चाहिये ! मनुष्य की गंध पाकर शेरनी जो पास ही शिकार की तलाश में थी ,ने
गुर्राना शुरू कर दिया !लेकिन शिवाजी चुपचाप निर्भीक से खड़े रहे जैसे कि एक बच्चा
अपनी माँ के नजदीक खड़ा रहता है ! शेरनी भी उनकी चुप्पी देखकर खामोश हो गयी ! शिवाजी
ने शेरनी से कहा –अगर आप मुझे खाना ही चाहती हैं तो बाद में खा लेना ! अभी मै कुछ
उद्देश्य लेकर आपके पास आया हूँ ! मुझे अपने गुरु के जीवन के लिए आपके दूध की
आवश्यकता है ! शेरनी ने शिवाजी को अपना दूध दुहाना स्वीकार कर लिया ! शिवाजी ने
शेरनी के चरण छुए और दूध दुहकर चल पड़े ! जब दुसरे शिष्यों ने शिवाजी को दूध दुहते
हुए देखा तो उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था !
यह माँ का प्यार ही होता है जो खून को भी
दूध में परिवर्तित कर देता है ! जब एक बच्चे का जन्म होता है तो माँ की छाती से
दूध झरने लगता है ! शिवाजी की आँखों में शेरनी के प्रति भी माँ जैसी श्रद्धा और
प्रेम था जिससे कि वह शेरनी का दूध प्राप्त कर सके !
मित्रता का मतलब है आत्मा से एक हो जाना
,कोई भेद न रह जाना ! आज हम मित्र बनाते हैं तो स्वार्थ के लिए बनाते हैं इसिलिए
हमें अत्यन्त दुखी होना पड़ता है !
बाल ब्रह्मचारिणी माँ कौशल जी पुस्तक “Way
to happiness” से ...हिन्दी अनुवाद में शब्दों में कुछ त्रुटि रह
गयी हो उसके लिए मै क्षमा प्रार्थी हूँ !
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