सभी मित्रों को श्रीकृष्ण जन्म अष्टमी की
हार्दिक बधाई ! शुभ संध्या !
श्रीकृष्ण –कुछ जाने अनजाने तथ्य !
कृष्ण का जीवन न तो राम की तरह बनवासी का रहा न ही महावीर की तरह सन्यासी का लेकिन एक संघर्षमय जीवन रहा ! भादों
कृष्ण सप्तमी –अष्टमी की रात्रि को कृष्ण का जन्म जेल में हुआ ! जेल में जन्म लेना
बुरा नहीं है ,जेल में ही जीवन को बिता देना जरूर बुरा है !
वसुदेव को कृष्ण के जन्म लेते ही कृष्ण को
लेकर अर्ध रात्रि में निकलना पड़ा और जैसे जेल से भी उन्हें रास्ता आप ही आप मिलता
चला गया ! श्रीकृष्ण का भाग्य जो साथ था !
यमुना नदी अपने उफान पर थी ! पानी ने जैसे
उन्हें आकर अंगूठे तक छुआ ,जैसे उनके हाथ लग कर जमुना भी पवित्र हो जाना चाहती हो ,
वैसे ही जमुना का उफान समाप्त हो गया और रास्ता मिलता चला गया !
कृष्ण को मारने के लिए पूतना राक्षसी को भेजा
था कंस ने लेकिन कृष्ण ने उस की छाती पर चढ कर उसी का वध कर दिया !
वर्ष की उम्र में ही कृष्ण को मल्ल युद्ध
के लिए निकलना पड़ा सत्य और न्याय नीति के लिए ! मल्ल उनसे हारे और उन्होंने सत्य
न्याय और नीति का साम्राज्य स्थापित किया !
एक दिवस उनकी उंगली में कुछ चोट लग गयी तब
धनुर्धर अर्जुन की पत्नी द्रौपदी ने अपनी साड़ी से पट्टी फाड़ कर उनके हाथ पर बाँधी
थी ,यानि श्रीकृष्ण को अपना भाई बना लिया था !जब द्रौपदी का भरी सभा में दुर्योधन
आदि कौरवों के द्वारा अपमान किया जा रहा था तब भीष्म पितामह आदि अपने वचन से बंधे
हुए बेबस थे ,दुशासन द्रौपदी का चीर हरण करने पर उतारू था ,उस समय कृष्ण ने अपने
ऊपर किये हुए उपकार का बदला द्रौपदी का चीर बढ़ा कर उसकी रक्षा करके दिया था !
यह बता दिया जाए की हरिवंश पुराण के अनुसार
द्रौपदी केवल अर्जुन की ही पत्नी थी ,सती स्त्री थी ,वरमाला डालते हुए तेज हवा से
माला टूट गयी थी और पुष्प छिटककर पास ही बेठे हुए बाकी चरों पांडवों पर भी गिर गये
थे ! इस कारण से यह भ्रान्ति उत्पन्न हो गयी कि द्रौपदी ने पाँचों पांडवो को वरा
था ! गांडीव धनुष को महाधनुर्धर अर्जुन द्वारा ही उठाया जा सकता था और उसी ने ही
निशाना साध कर द्रौपदी को स्वयम्वर में जीता था !
कृष्ण और सुदामा की बेमिसाल दोस्ती किसी से
छिपी हुई नहीं है ! आज कहाँ ऐसी मित्रता ,कहाँ ऐसा समर्पण !
एक समय किसी महर्षि ने उन्हें पूछा कि महा
रूपसी और गुणवान रुक्मणि ,सत्यभामा
,जाम्बवंती आदि 16000 रानियों के होते हुए
आप गोपियों पर ही क्यों इतना स्नेह रखते है तब उन्होंने कहा कि ये रानियाँ अपने
राज रानियाँ होने के अहंकार में जीती हैं ,गोपियों की निश्छल प्रीति ,निस्स्वार्थ
प्रेम की तुलना आप इन रानियों से कैसे कर सकते हैं ! उन्होंने कहा कि जाओ रनवास
में जाओ और कहना श्रीकृष्ण को भयंकर पेट में दर्द हुआ है ,जो भी रानी अपने चरणों
कि रज पानी में घोल कर पीला दे ,तभी श्रीकृष्ण का पेट दर्द ठीक हो सकता है ,लेकिन
याद रहे उस के बाद उस रानी को नरक में
जाना पड़ेगा ! एक एक करके सभी रानियों से जब पूछ लिया गया तो सभी ने शर्त सुनकर मना
कर दिया ! तब वह महर्षि गोकुल पहुंचे तो तुरंत गोपियों ने कहा कृष्ण के जीवन के लिए
एक बार तो क्या सौ बार भी नरक जाना पड़े तो हम तैयार हैं !
ऐसा था उनका समर्पण ! निश्छल, निस्स्वार्थ
प्रेम !
एक समय रुक्मणि ने कहा –स्वामी ! 16000
रानियाँ होते हुए भी आप मुरली के ही पीछे क्यों भागते हैं ! हर समय
उसे ही हाथों में उठाये रहते हैं ! तब कृष्ण ने कहा –रुक्मणि ! ये मुरली जब हम इसे
बुलवाते हैं तभी बोलती है ,जितना बुलवाते हैं उतना ही बोलती है और जब भी बोलती है
मीठा ही बोलती है ,क्योंकि मुरली में कोई गाँठ नहीं है ,और तुम सब रानियाँ
........?
आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव के जन्म
अष्टमी के उपलक्ष्य में विशेष प्रवचन से
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