मनोमंत्र
मानव का उत्थान पतन सब ,
अंतर्मन पर अवलंबित है
निज पर का हित और अहित सब
मात्र इसी पर आधारित है !
उजला या काला भविष्य है ,
वर्तमान के भाव तंत्र में
जो चाहो सों बन सकते हो
महाशक्ति है मनोमंत्र में !
पापी या पुण्यात्मा तुमको ,
करे तुम्हारा अंतर्मन ही
सबसे पहले इसे सवारों
मूल कर्म का है चिंतन ही !
जब भी सोचो अच्छा सोचो ,
मन
को सौम्य ,शांत शुभ गति दो
अन्धकार युत जीवन पथ को
ज्योतिर्मय निज पर हित मति दो !
उपाध्याय अमर मुनि जी की पुस्तक “अमर
क्षणिकाएं” से
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