मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday, 23 August 2012

आनन्द.....


आनन्द.....
प्रभु को याद कर उसकी भक्ति में थोडा नाचें झूमें ! मन को इसमें न केवल सुख मिलेगा बल्कि शान्ति भी मिलेगी ! नृत्य और संगीत तन मन के तनाव को दूर करने की सर्वोत्तम और सुगम औषधि है ! नृत्य को गलत न मानें ! मीरा भी जमकर नाची थी और उसका नृत्य प्रभु के नाम पर महापूजन हो गया था !
जाने कब सूरज डूब चला
और चाँद रात को निखर उठा
जाने क्या भाव उठा उर में
जो बूंद समाई सागर में 

सागर की भी लीला देखो
जो समा गया उर गागर में
वह जाता है उस द्वार कभी
जिसको तुम सपना कहते हो 

वह सत्य आँख से देख रहा
तुम पास उसी के रहते हो
तुम दूर कहाँ उस मन्दिर से
जिसकी प्रतिमा तुम स्वयं बनी 

मीरा बस तेरा नाम नहीं
तुम पूर्ण,पूर्ण की अंग बनी
सुन तेरे उर की स्वर लहरी
उसका अंतस हुलसाता है 

करताल कभी उसके सुर का
वीणा का साथ निभाता है
तुम गीत रचो वह कंठ बने
आँखों के पथ दो , दीप जले 

इस स्वपन सत्य की लीला में
जाने कब प्रियतम आन मिले
मुनिश्री चन्द्रप्रभ जी की पुस्तक  “बातें जीवन की ,जीने की” से 

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