जय जिनेन्द्र
मित्रों .......शुभ प्रात: प्रणाम
सच्चे
सुख का एक ही रास्ता है -ज्ञान , तप एवं संयम का समन्वय ! अकेला ज्ञान अहंकार पैदा
करता है ,अकेला तप कष्टों की अँधेरी खोह
में ले जाकर छोड़ता है और अकेला संयम भावनाओं का दमन करता
है !
ज्ञान
का काम है प्रकाश करना –प्रकाश होने पर पता चलता है कहाँ क्या है ,कहाँ क्या नहीं है ! कहाँ उपयोगी
चीजें है और कहाँ कचरा भरा हुआ है ! अँधेरे में किसी चीज का सम्यक बोध नहीं हो
सकता इसीलिए प्रकाश जरूरी है !
तप
का काम है शोधन करना ! कचरे का शोधन उसे जलाने से होता है ! आत्मा कचरे के ढेर से
मलिन है !उसे शुद्धि करने के लिए तप की ज्योति को प्रज्वलित करना होगा ! जब तक
आंतरिक और बाहिय तप की ज्योति नहीं जलेगी ,आत्मा का शोधन नहीं होगा !
तपस्या
से शुद्ध आत्मा पुन: मलिन न हो इसीलिए कचरा आने के रास्ते को बंद करना होगा ! यह
काम संयम का है ,चरित्र का है ! संयम निरोधक है ,जहाँ संयम खड़ा है वहाँ किसी अवांछित
या असामाजिक तत्व की घुसपैठ नहीं हो सकती !
आचार्य
श्री तुलसी जी “दिये से दिया जले” में
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