मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday, 15 January 2013

व्यहावारिकता


जय  जिनेन्द्र बंधुओं ....प्रणाम  शुभ प्रात:
व्यहावारिकता सिखाती है कि हंसमुख चेहरा ,मीठी वाणी व शिष्ट वर्ताव रखते समय यह मत देखिये कि सामने कौन है ? मेरा परिचित है या 
नहीं ? किन्तु यह देखिये कि सामने भी आप जैसा एक मनुष्य है ,जिसका मन भी आपकी तरह इन गुणों का भूखा है ,और यह मत भूलिए कि शिष्टता ,सद्व्यवहार की बेल बगीचे में डाले गये बीज की भान्ति फलवती बनकर आपको कृतार्थ कर सकती है !
मनुष्य अपने कर्तव्य कर्म को ,केवल कर्तव्य बुद्धि से करता चला  
जाए ,अगल बगल न देखे ,वही सबसे बड़ा बुद्धिमान है !
मनुष्य स्वयं अभय हो .दूसरों को अभय दे ! स्वयं श्रम करे व अपने श्रम बल से दूसरों को लाभान्वित करे –यह उसके ज्ञान ,विज्ञान और बुद्धिबल की उपयोगिता है !

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