जय जिनेन्द्र बंधुओं ..शुभ
प्रात: प्रणाम
मुनि श्री महिमा सागर जी
जो साधक अल्पाहारी है
,इन्द्रियों का विजेता है ,समस्त प्राणी जगत के प्रति मैत्री करुणा का अक्षय अमृत
बरसाता है ,उनके दर्शनों के लिए देव एवं देवेन्द्र भी आतुर रहते हैं वास्तव में
जिसने अपने आप पर विजय प्राप्त कर ली ,अपनी वासनाओं को खत्म कर दिया ,कामनाओं को
जीत लिया सँसार में उससे बढ़कर कोई भी नहीं है
यूँ तो रोहतक में चातुर्मास
करने वाले दिगम्बर जैन आचार्य गुप्तिनंदी जी के संघ के समस्त साधु साध्वी सरल
स्वभावी व ज्ञान - ध्यान व जप -तप में लीन हैं ! लेकिन इन सब साधु वृन्द में मुनिश्री महिमा सागर जी का तप और
परिषह सहन की शक्ति आश्चर्यजनक है ! पूरे चातुर्मास में भरपूर भीषण गर्मी में व
अभी चातुर्मास के बाद भी मुनिश्री इस भीषण सर्दी के मौसम में एक उपवास अथवा दो
उपवास के बाद ही एक पारणा कर रहे हैं ! कल
भी मुनिश्री की शक्ति और चेहरे पर तेज देखते ही बनता था जबकि उन्हें आहार
पानी ग्रहण किये 60 घंटे के
करीब हो चुके थे ,तब भी उन्होंने खुद से बढ़कर गुरुदेव गुप्तिनंदी जी की वैय्यावृति
की !
दिगम्बर जैन संतों की चर्या
के बारे में जो लोग नहीं जानते हैं ,उनके लिए संक्षेप में यहाँ कह दूँ कि तन पर एक
धागे के बराबर भी परिग्रह नहीं , 24 घंटे में एक ही बार सूर्योदय के बाद आहार व जल ग्रहण मुख्य हैं !
1975 में
जन्मे 31 मार्च 1991 को क्षुल्लक
दीक्षा मात्र 16 वर्ष की उम्र में गृह त्याग , 17 फरवरी 2002 को ऐलक दीक्षा व 13
फरवरी 2006 को मुनि दीक्षा श्रवणबेलगोला में
लेकर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं व प्राणी मात्र का कल्याण कर रहे हैं !
धन्य है ऐसे दिगम्बर संतों
का जीवन व जप तप ! तन पर एक धागे के बराबर भी परिग्रह नहीं ! मन में विकार और
दुर्भावना के लिए कोई स्थान नहीं !भावना है तो बस प्राणी मात्र के कल्याण की !
निंदक और प्रशंसक जिनके द्वारा समान रूप से आशीर्वाद पाते हैं, ऐसे सरल स्वभावी
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति मुनिश्री
महिमा सागर जी के श्री चरणों में
बारम्बार नमन !
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