मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Friday, 11 January 2013

व्यहावारिकता व कर्तव्य कर्म


एक बार अमेरिका के धन कुबेर कार्नेगी की पत्नी अकेली ही शाम को पैदल घूमने निकली !संयोग से पानी बरसने लगा ! वह बरसात से बचने के लिए रास्ते की एक दूकान के बाहर जाकर खड़ी हो गयी !
दूकान में छुटटी हो गयी थी ! थके मांदे कर्मचारी घर जाने की जल्दी में थे !किसी ने अपरिचित महिला की ओर देखा ही नहीं ! एक साधारण क्लर्क की निगाह उस भद्र महिला पर पड़ी तो उसने साधारण शिष्टाचार का परिचय देते हुए एक कुर्सी भीतर से लाकर रखी एवं आग्रहपूर्वक बैठाते हुए कहा –श्रीमतीजी क्या मै आपकी कुछ और सेवा कर सकता हूँ ?वह युवक की शिष्टता व सभ्यता से बहुत प्रभावित हुई ! वर्षा बंद होने पर वह युवक को धन्यवाद देकर चली गयी !
अगले दिन दूकान पर एक व्यक्ति आया और युवक से बोला –आपको श्रीमती कार्नेगी ने बुलाया है !विस्मित हुआ युवक जब उनकी कोठी पर पहुंचा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था ! यह तो वही महिला है जो कल शाम को वर्षा के कारण दूकान पर रुकी थी ! युवक ने सिर झुकाकर अभिवादन किया !
श्रीमती कार्नेगी ने युवक को आदरपूर्वक बैठाकर कहा –स्काटलैंड में मैंने बहुत बड़ी जायदाद खरीदी है ,उसके लिए मुझे एक योग्य प्रबंधक की आवश्यकता है ,वेतन स्तर भी बहुत अच्छा रहेगा ! यदि आपको कोई आपत्ति नहीं हो तो मै आप जैसे सुयोग्य व्यक्ति को प्रबंधक के रूप में पाकर धन्य हो जाउंगी !
युवक अपनी बदलती तकदीर की तस्वीर देख कर मन ही मन मुस्कुरा रहा था ! एक छोटे से सद्व्यवहार ने ही उसकी जीवन की दिशा बदल दी थी !
व्यहावारिकता सिखाती है कि हंसमुख चेहरा ,मीठी वाणी व शिष्ट वर्ताव रखते समय यह मत देखिये कि सामने कौन है ? मेरा परिचित है या नहीं ?किन्तु यह देखिये कि सामने भी आप जैसा एक मनुष्य है ,जिसका मन भी आपकी तरह इन गुणों का भूखा है ,और यह मत भूलिए कि शिष्टता ,सद्व्यवहार की बेल बगीचे में डाले गये बीज की भान्ति फलवती बनकर आपको कृतार्थ कर सकती है !
मनुष्य अपने कर्तव्य कर्म को ,केवल कर्तव्य बुद्धि से करता चला
जाए ,अगल बगल न देखे ,वही सबसे बड़ा बुद्धिमान है !


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