जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
दर्शन का स्रोत मस्तक है
तथा जो स्वास्तिक से अंकित ह्रदय होता है ,उसमे आध्यात्म का झरना बहता है ! दर्शन
यदि न भी हो तो आध्यात्म का जीवन चल भी सकता है ,चलता ही है ! आध्यात्म को दर्शन की जरूरत ही नहीं है और
आध्यात्म के बिना दर्शन का देखना / श्रद्धान नहीं हो सकता ! लहरों के बिना सरोवर
रह सकता है लेकिन सरोवर के बिना लहरों का अस्तित्व होना ही संभव नहीं हो सकता !
तैरने वाला तैरता है
सरोवर मे ,उसे भीतरी नहीं बाहरी दृश्य दिखाई पड़ते हैं, यह है दर्शन ! वहीँ पर
दूसरा दुबकी लगाता है, उसे सरोवर का भीतरी भाग दिखाई पड़ता है ,बाहर के दृश्य
समाप्त हो जाते हैं ,यह है आध्यात्म !
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